यूपी सुन्नी वक्फ़ बोर्ड का दावा है कि खुद बादशाह शाहजहां ने ताजमहल को वक्फ संपत्ति घोषित किया था।
नई दिल्ली : जाओ पहले शाहजहां के साइन वाला वक्फनामा लाओ, डायलॉग थोड़ा फिल्मी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड से ऐसा ही कुछ कहा है।
मामला ताजमहल पर मालिकाना हक का है. यूपी सुन्नी वक्फ़ बोर्ड का दावा है कि खुद बादशाह शाहजहां ने ताजमहल को वक्फ संपत्ति घोषित किया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड से कह दिया है कि वो 1 हफ्ते में शाहजहां के दस्तखत वाला वक्फनामा पेश करे।
दरअसल, 2005 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ताजमहल को वक्फ की संपत्ति बताते हुए एक आदेश जारी किया था। भारतीय पुरातत्व सर्वे यानी ASI इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कई सालों से लंबित इसी मामले की कोर्ट में सुनवाई हो रही थी।
ASI की तरफ से पेश वकील एडीएन राव ने कोर्ट को बताया कि 1858 में एक कानून के ज़रिए ताजमहल समेत कई इमारतों का मालिकाना हक आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर से ब्रिटेन की रानी को ट्रांसफर कर दिया गया था। आज़ादी के बाद 1948 में एक कानून पास किया गया, जिससे इन इमारतों पर भारत सरकार का कब्ज़ा हो गया।
वक्फ बोर्ड के वकील ने दलील दी कि ताजमहल एक मकबरा है। ताजमहल को बनवाने वाले शाहजहां ने 1666 में अपनी मौत से पहले इसे वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया था। वकील ने कहा कि शाहजहां ने इस बारे में बकायदा एक वक्फनामा जारी किया था।
इस दावे पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि जीवन के आखिरी दिनों में शाहजहां अपने बेटे औरंगजेब की कैद में था। कैद में रहते हुए उसने कैसे वक्फनामे पर दस्तखत कर दिए। वो तो ताजमहल देखने जाने के लिए भी बादशाह की इजाज़त का मोहताज था।
कोर्ट ने ये भी कहा कि इस तरह के मामले अदालत का वक्त बर्बाद करते हैं। कोर्ट ने वक्फ बोर्ड को अपने दावे की पुष्टि के लिए दस्तावेज पेश करने के लिए 1 हफ्ते का वक्त देते हुए सुनवाई टाल दी।